विक्रम बेताल की कहानियां (Vikram Betal ki Kahani in Hindi
दोस्तों आपने बचपन में विक्रम बेताल की कहानियां तो ज़रुर सुनी होंगी। यंहा आपको इन मनोहर कहानियों का संग्रह मिलेगा, क्यूंकि हम आपके लिये लाये हैं, विक्रम बेताल की कहानियां। यह कहानियाँ बेताल नाम के एक पिशाच द्वारा उज्जैन के राजा विक्रमादित्य जो कि बहुत ही ज्ञानी और सहनशील राजा थे से पूछी गई थी।
जब घनी अंधेरी रात मे राजा
विक्रमादित्य बेताल को एक तांत्रिक के पास ले जाने के लिए पेड़ से उतारते हैं तब
बेताल उनसे ये कहानियाँ पूछता था। बेताल जानता था कि राजा बहुत ज्ञानी हैं, इसलिए उसने राजा के सामने
एक शर्त रखी। वह राजा को एक कहानी सुनाएगा और अगर राजा बीच मे बोले या गलत जवाब
दिया तो वह राजा का सर फाड़ देगा और अगर सही जवाब दिया तो फिर से उड़ कर पेड़ पर
चला जाएगा।
इस प्रकार जब भी राजा उसे
पेड़ से उतारता वो एक कहानी सुनाना शुरु कर देता।
राजा के पास उसकी कहानियाँ सुनने के अलावा दूसरा कोई रास्ता न था क्योंकि राजा को अपने वचन का पालन करने के लिए बेताल को अपने साथ ले जाना था। इस प्रकार बेताल ने राजा को 25 कहानियाँ सुनाई। क्या था इन कहानियों में और अंत मे क्या हुआ ये जानने के लिए पढ़े विक्रम बेताल की सभी कहानियाँ जिनका संग्रह आपको इस लेख मे मिल जाएगा।
विक्रम-बेताल की कहानी:
तांत्रिक की चाल |
Tantrik ki Chal – Vikram Betal Story in Hindi
बहुत समय पहले की बात है, भारत में विक्रमादित्य नामक एक राजा थे। वे अपनी दयालुता और बुद्धिमानिता के लिए जाने जाते थे।उनकी बहादुरी की खूब चर्चा होती थी।
एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक तांत्रिक आया। उसने राजा को उपहार स्वरूप एक फल दिया। जिसे राजा ने सप्रेम स्वीकार किया। उस अनोखे तांत्रिक ने राजा से फल को राजकोष में रखने का अनुरोध किया।
अगले दिन तांत्रिक फिर आया और राजा को एक और फल देकर राजकोष में रखने का अनुरोध किया। सालों तक यही क्रम चला। एक दिन कोषाध्यक्ष ने कर राजा को एक अजीबोगरीब घटना बताई।
राजा दौड़ता हुआ राजकोष पहुँचा। तांत्रिक के द्वारा दिए हुए सारे फल किमती रत्नों मे बदल चुके थे। किसी को भी इतने बहुमूल्य रत्नों को देखकर अपनी आँको पर विश्वास नही हो रहा था। राजा और मंत्री खुशी से फूले नही समा रहे थे।
अगले दिन तांत्रिक फिर आया। राजा ने अपने सिंहासन से उठकर आदरपूर्वक सका नमन करते हुए कहा, “महात्मा जी, आपने दरबार में पधार का हमारा तथा दरबार का मान बढ़ाया है। मुझे आशिर्वाद दें। बताइये मैं आपके ले क्या कर सकता हूं?”
तांत्रिक ने कहा, “मेरा आशिर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। पर हां, तुम मेरी एक मदद कर सकते हो…”।
राजा विक्रमादित्य मदद मांगने वालों की हमेशा मदद करते थे। उसकी स्विकृति पर तांत्रिक ने कहा, “घने जंगलों मे एक पीपल का पेड़ है, उस पर एक शव लटका हुआ है। मुझे देवी को प्रसन करने के लिए उस शव की बलि देनी है। उस जंगल में जाने से लोग डरते हैं। तुम्हे अमावस की रात को उस जंगल में अकेले ही जाना होगा। क्या तुम मेरे लिए उस शव को ला पाओगे”?
राजा अमावस्या की राज को जंगल के लिए निकल पड़े। काली अंधेरी रात थी। जंगल में गहरा अंधकार था पर बिना विचलित हुए और बिना डरे, राजा आगे बढ़ते गए। जंगल के बीच में वे पीपल के पेड़ के पास पहुँचे। पेड़ के चारो ओर कंकाल, खोपड़ी और हड्डियां जमीन पर बिखरी हुई थीं। पेड़ पर उल्टा लटका हुआ एक सफेद रंग का शव राजा को दिखाई दिया।
राजा पेड़ पर चढ़ गए। उन्होंने शव को बढ़ी तेजी से उतारा और नीचे उतर आए। उसे कंधे पर डालकर राजा वापस चलने लगे। अचानक शव हंसने लगा। उसे हंसता देक राजा को एक झटका लगा, पर बिना डरे उन्होनें अपना चलना जारी रखा।
शव ने पूछा, “तुम कौन हो”?
राजा ने कहां, “मैं राजा विक्रमादित्य हूँ”।
“ आप कौन है”? राजा ने शव से पूछा
शव ने कहा, “मैं बेताल हूँ। तुम मुझे कहां ले जा रहे हो”?
राजा ने बेताल को तांत्रिक की पूरी कहानी बता दी। कहानी सुनकर बेताल बोला, “मेरा और तांत्रिक का जन्म एक ही समय मे हुआ था। अगर तांत्रिक मुझे प्राप्त कर लेगा, तो मुझे मारकर वह अपनी शक्ति बढ़ा लेगा और बाद में वह तुम्हे भी मार देगा। वह बहुत बड़ा धोखेबाज है”।
राजा सोच में पड़ गया। फिर बोला, “मैंने तांत्रिक से आपको लाने का वादा किया है। चाहे मेरी जान भी चली जाए, पर वादा निभाने के लिए मुझे आपको ले ही जाना पड़ेगा”।
बेताल राजा से प्रभावित हो गया और उसने राजा की मदद करने का निर्णय किया। वह राजा से बोला, “ठीक है, मैं तुम्हे कहानी सुनाकर अंत में प्रश्न पूछूंगा। अगर सही हुआ तो मैं वापस पेड़ पर चला जाउंगा। अगर तुम चुप रहे तो तुम्हारा सिर फट जाएगा… क्या तुम्हे मंजूर है…”?
बेताल जानता था कि राजा बुद्धिमान है और हमेशा सच बोलेंगे तथा सही उत्तर ही देंगे। विक्रमादित्य के पास राजी होने के अलावा और कोई विकल्प ही नही था। बेताल ने अपनी कहानी शुरु की।
विक्रम-बेताल की कहानी: ईर्ष्या का फल | Irshya ka Phal – Vikram Betal story in Hindi
बेताल ने विक्रमादित्य को
नई कहानी सुनानी शुरू कर दी।
चित्रकूट में राजा उग्रसेन
का शासन था। उनके पास एक चतुर तोता था।
राजा ने तोता पूछा, “ मित्र, तुम्हारी नजर में मेरे लिए
उपयुक्त वधू कौन होगी?”
तोते ने उत्तर दिया, “ वैशाली की राजकुमारी आपके
लिए उपयुक्त वधू होगी। उसका नाम माधवी है। वह वहां की सभी कन्याओं में सबसे सुंदर
है।”
राजा ने तुरंत वैशाली के राजा को विवाह का प्रस्ताव भिजवाया, जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। धूमधाम से दोनों का विवाह हुआ और वह सुख पूर्वक रहने लगे।
जैसे राजा के पास तोता था ऐसे ही माधवी के पास भी एक मेना थी। माधवी के साथ वह भी चित्रकूट आ गई थी।
धीरे-धीरे तोता मैना दोनों की दोस्ती हो गई। एक दिन मैना ने तोते को एक कहानी सुनाई।
मैना कहा किसी समय की बात है, एक धनी व्यापारी था। उसकी चंचला नाम की एक पुत्री थी चंचला बहुत सुंदर थी इसके साथ-साथ बुद्धिमान भी बहुत थी।
उसके पिता को उसका यह स्वभाव पसंद नहीं था इसलिए उसके प्रभाव को बदलने की उसने बहुत कोशिश की, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
राजा ने एक सुंदर वर ढूंढ कर उसका विवाह कर दिया।
चंचला का पति एक व्यापारी था। व्यापार के चलते वह अधिकांश बाहर ही रहा करता था। एक दिन चंचला के पिता ने उसका हाल जानना चाहा इसलिए उसने एक दूत चंचला के घर भेजा।
जब वह दूत चंचला के घर पहुंचा, तब चंचला का पति काम से बाहर गया हुआ था। चंचला ने दूत का स्वागत किया। तथा उसे भोजन कराया, वह दूत देखने में बहुत सुंदर था दोनों एक दूसरे को पसंद आ गए और उन में प्रेम संबंध स्थापित हो गया।
जैसे जैसे समय बीतता गया
वैसे उनका प्रेम गहरा होता चला गया जिसके परिणाम स्वरूप वह दूत चंचला के पति से
ईर्ष्या करने लगा। चंचला को यह डर सताने लगा कि कहीं इन सब के बारे में उसके पति
को पता ना चल जाए। उसने एक योजना बनाई।
चंचला ने एक दिन अपने प्रेमी को शरबत में जहर मिलाकर अपने प्रेमी को पिला दिया। उसके प्रेमी ने बिना किसी शंका के वह शरबत पी लिया। और तुरंत उसकी मृत्यु हो गई। चंचला ने उसके मृत शरीर को घसीटकर एक कोने में छिपा दिया।
जब उसका पति घर लौटा तो उसे
कुछ आभास नहीं हुआ। भोजन करते समय चंचला चिल्लाई, “ मदद, मदद, हत्या, हत्या….
अड़ोसी पड़ोसी शोर सुनकर
उसके घर पर इकट्ठे हो गए। उन्होंने मृत दूत को देखा और सिपाहियों को खबर कर दी।
उसके पति की पेशी राजा के सामने हुई।
राज्य में हत्या के लिए मृत्युदंड ही मिलता था। जब चंचला
के पति को फांसी के लिए ले जा रहे थे तभी चोर वहां आया और राजा का अभिवादन कर बोला, “महाराज, मैं एक चोर हूं। जिस रात
हत्या हुई, मै चोरी के इरादे से अंदर शिवा बैठा था। मैंने देखा कि इस
व्यक्ति की पत्नी ने शरबत में जहर मिलाकर इसे पिलाया, जिससे इसकी तुरंत मृत्यु हो गई। कृपया आप इस निर्दोष व्यक्ति
को छोड़ दें।”
राजा ने निर्दोष पति को
छोड़कर चंचला को मृत्यु दंड दे दिया।
बेताल ने पल भर रुक कर राजा से पूछा,” राजन! आपके विचार में दुर्भाग्य का दायित्व किस पर है?”
विक्रमादित्य ने उत्तर दिया,” चंचला के पिता ही इस
दुर्भाग्य के जिम्मेदार हैं। यदि उन्होंने चंचला के पति को चंचला की आदतों के बारे
में बताया होता तो वह सावधान रहता और अपनी पत्नी को ऐसे अकेले नहीं छोड़ता।”
राजा के सत्य वचन सुनकर
बेताल मुस्कुराया। उसने कहा,” अच्छा, मैं फिर चला…” यह कहता हुआ वह उड़कर पीपल
के पेड़ पर चला गया।
विक्रम-बेताल की कहानी: कड़वा सच | Kadwa Sach – Vikram Betal Story in Hindi
राजा विक्रमादित्य ने फिर
से पेड़ पर चढ़कर बेताल को नीचे उतार लिया और अपने कंधे पर डाल कर चल दिए। बेताल
रहा और राजा चुपचाप चलते रहे। बेताल हंसता
रहा और राजा चुपचाप चलते रहे। राजा को दृढ़ प्रतिज्ञा चलता देखकर बेताल ने कहा, “ ठीक है राजन, दूसरी कहांनी सुनाता हूं”
एक बार की बात है… वैशाली पर राजा चंद्रधर का
शासन था। वह बहुत ही दयालु राजा थे। कहां जाता था कि कोई भी याचक उनके दरबार से
खाली हाथ नहीं लौटता था।
एक दिन एक बड़ी ब्राह्मण
दरबार में आया। उसके साथ उसके तो अंधे
बैठे थे। आदर पूर्वक राजा को नमन कर के ब्राह्मण ने कहा, “ महाराज, मैं बहुत गरीब हूं। अपने
बच्चों को भोजन भी नहीं दे पाता हूं। यदि यही स्थिति रही तो यह अधिक जीवित नहीं रह
पाएंगे। मैं व्यापार शुरू करना चाहता हूं। मुझे 10 सोने की अशर्फी देने की
कृपा करें।”
राधा को ब्राह्मण तथा उसके
पुत्रों पर बहुत दया आई। उन्होंने अपने कोषागार से दस अशर्फी ब्राह्मण को दिलवा कर पूछा, “ तुम इन्हे वापस कब तक करोगे?”
ब्राह्मण ने कहा,” महाराज, मैं 1 साल के अंदर जरूर यह उधार चुकता कर दूंगा।”
सशंकित राजा ने कहा, “ और अगर पैसे लेकर तुम गायब
हो गए तो?”
ब्राह्मण ने कहा, “ महाराज, आप चाहे तो मेरे बेटों को अपने पास पैसे लौटाने तक रख सकते हैं।”
राजा हैरान था। भला दो अंधे
लड़के उसके किस काम के? राजा को हैरान देखकर ब्राह्मण ने कहा, “ मेरे पुत्रों में विशेष गुण
हैं। बड़ा पुत्र किसी भी घोड़े को छूकर और सुनकर उस घोड़े की जाती और स्वभाव बता
सकता है।
छोटा पुत्र किसी पत्थर को
हाथ में लेकर की परख कर सकता है।” ब्राह्मण की बात सुनकर राजा ने सफलतापूर्वक दोनों को अपने महल
में ब्राह्मण के उधार चुकता करने तक रख लिया।
एक दिन एक व्यापारी राजा के
पास एक बहुत अच्छी नस्ल का घोड़ा लेकर आया। वह देखने में स्वस्थ और तगड़ा था। राजा
को घोड़ा बहुत पसंद आया। सौदा पक्का होने वाला ही था कि राजा को अचानक ब्राह्मण
पुत्र का ख्याल आया। उसे बुलवाया गया।
उसने घोड़े को छूकर और
सूंघकर कर बताया कि यह बहुत ही भड़कने वाला घोड़ा है। राजा ने इस पर सत्यता की
जांच के लिए घुड़सवार को भेजा। घुड़सवार अनेक प्रयत्नों के बाद भी घोड़े पर बैठने
में सफल नहीं हो पाया। और घोड़े ने उसे गिरा दिया ब्राह्मण पुत्र से प्रसन्न होकर
राजा ने उसे परितोषिक दिया।
कुछ दिनों के बाद राजा को
रत्न खरीदने की इच्छा हुई। जोहरी ने उन्हें कीमती रत्न दिखाएं। राजा ने एक बड़ा सा
हीरा पसंद किया उन्होंने उसे खरीदने से पहले ब्राह्मण के छोटे पुत्र को बुलवाया।
ब्राह्मण पुत्र ने हीरा हाथ में लेकर कहां, “महाराज, यह श्रापित हीरा है। इसे
पहनने वाले को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।”
इस बात की सत्यता जानने की
इच्छा से उन्होंने जौहरी की ओर नजर डाली। जौहरी ने इस बात की सत्यता को स्वीकार
करते हुए कहां, “ इनकी बात सही है। इतने पहले इसे तीन लोगों ने लिया था और उनकी
मौत आश्चर्यजनक ढंग से अचानक ही हो गई।” यह सुनकर राजा ने हीरे की
जगह एक बड़ा रूबी खरीद कर ब्राह्मण पुत्र को इनाम दिया।
साल पूरा होते-होते
ब्राह्मण अशरफिया लौटाने राजा के पास आया। उसका व्यापार अच्छा चल निकला था। राधा
ने पूछा कि पुत्रों की तरह क्या उसने भी कोई विशेष गुण है? ब्राह्मण ने बताया कि वह
किसी का हाथ देकर उसका बीता हुआ कल बता सकता है राजा ने ब्राह्मण से अपना हाथ देखने के लिए कहा।
राजा कहां देखकर भ्रमण ने
कहा, “ महाराज, एक बड़े राज्य के आप एक होनहार शासक हैं, पर आपके पिताजी एक चोर थे, जिन्होंने कई शहरों को लूटा
था।”
ब्राह्मण की बात सुनते ही
राजा बबूला हो गया।
“ झूठे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में मेरे ही दरबार में, ऐसी बात कहने की”?
अपने सेवकों को राजा ने
ब्राह्मण और उसके पुत्रों को पकड़ कर उनका सिर कलम करने की आज्ञा दी।
इतना कहकर बेताल ने पूछा, “ राजन, मुझे बताइए, आपके विचार में उन लोग की
मृत्यु का उत्तरदाई कौन है?”
विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “ अपने और अपने पुत्रों की मृत्यु का उत्तरदाई ब्राह्मण था। हालांकि उसने सच कहा था पर कड़वे सच को कहने से पहले उसे बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए था। राजा को पता था कि वह एक चोर की संतान है पर सबके सामने इस बात का कहां जाना राजा के प्रभुत्व के लिए हानिकारक और अपमानजनक बात थी। इस बात के लिए ब्राह्मण को मौत की सजा तो होनी ही थी।”
बेताल की हंसी से जंगल गूंज
उठा। “ मैं आप के निर्णय से प्रभावित हुआ राजन!” यह कहकर बेताल वापस पेड़ पर
चला गया।
विक्रम-बेताल की कहानी: राजा महेंद्र का न्याय | Raja Mahendra ka nyay – Vikram Betal Story in Hindi
पेड़ पर उल्टे लटके बेताल
को राजा विक्रमादित्य ने फिर से पेड़ पर चढ़कर नीचे उतारा और अपने कंधे पर डाल कर
चल दिए। बेताल मन ही मन राजा के धैर्य और साहस की प्रशंसा कर रहा था ।
बेताल ने फिर से कहानी शुरु
कर दी।
कभी वाराणसी में राजा
महेंद्र का शासन हुआ करता था। वे राजा विक्रमादित्य की तरह दयालु और धैर्यवान
थे। नैतिकता से भरपूर बहुत ही उदास थे।
उनके इन्हीं गुणों के कारण प्रजा उन्हें बहुत पसंद करती थी।
उसी शहर में धन माल्य नाम
का एक बहुत ही धनी व्यापारी रहता था।
वह दूर-दूर तक अपने व्यापार और धन
के लिए प्रसिद्ध था। धनमाल्य की एक
खूबसूरत जवान पुत्री थी।
लोग कहते थे कि इतनी सुंदर
थी कि स्वर्ग की अप्सरा ए भी उससे ईर्ष्या
क्या करती थी। उसके काले लंबे बाल ऐसे लगते थे, जैसे काली घटा हो, त्वचा दूध के समान सफेद थी और स्वभाव जंगल के हिरण की तरह
कोमल था।
राजा ने भी उसकी तारीफ सुनी
उसे प्राप्त करने की इच्छा राजा के मन में
जागृत हो गई। राजा ने अपनी दो विश्वासपात्र सेविकाओं को बुलवाया और कहां, “ तुम लोग व्यापारी के घर जाकर उसकी पुत्री से मिलो। लोगों की
बातों की सच्चाई का पता करो कि सच में वह रानी बनने योग्य है या नहीं।” सेविकाएं अपने कार्य के लिए चल दीं।
वेश बदलकर व्यापारी के घर
पहुंची। व्यापारी की पुत्री की सुंदरता को देखते ही आश्चर्यचकित, मंत्रमुग्ध सी खड़ी की खड़ी
रह गई। पहली सेविका बोली, “ओह! क्या रूप है राजा
को इससे विवाह जरूर करना चाहिए।”
दूसरी सेविका का बोली, “ तुम सही कह रही हो। ऐसा रूप
मैंने आपसे पहले नहीं देखा। राजा तो इसके ऊपर से अपनी नजर ही नहीं हटा पाएंगे।”
थोड़ी देर दोनों ने सोचा
फिर दूसरी तरीका ने कहा, “ तुम्हें लगता नहीं है कि यदि राजा ने विवाह किया तो उनका
ध्यान काम से हट जाएगा?” पहली स्वीकृति गर्दन हिलाकर बोली, “ तुम सही कह रही हो। यदि ऐसा
हुआ तो राजा अपने राज्य और प्रजा पर ध्यान नहीं दे पाएंगे।” दोनों ने राजा को सच ना बताने का निर्णय किया।
राजा को उन पर बहुत भरोसा
था। राजा को जैसा बताया गया उसी को उन्होंने सही मान लिया। पर उनका दिल टूट गया।
एक दिन धनमाल्य खुद अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव लेकर राजा के पास आए पर दुखी
राजा ने बिना सोचे प्रस्ताव ठुकरा दिया।
निराश होकर धनमाल्य ने
पुत्री का विवाह राजा के एक दरबारी से कर
दिया। जीवन रूपी गाड़ी चल रही थी। कुछ दिन बीत गए। एक दिन राजा अपने रथ पर सवार
होकर अपने दरबारी के घर की ओर से गुजरे। उन्होंने खिड़की पर एक बहुत सुंदर स्त्री को खड़ा था। राजा उसके
रूप से बहुत प्रभावित हुए।राजा ने सारथी
से पूछा, “मैंने ऐसा रूप पहले
कभी नहीं देखा है। यह खिड़की पर खड़ी स्त्री कौन है?”
सारथी ने कहा, “ महाराज, यह व्यापार धनमाल्य की इकलौती पुत्री है। लोग कहते हैं कि स्वर्ग की अप्सराए भी उसके रूप से ईर्ष्या करती
हैं। आप के एक दरबारी से ही उसका विवाह हुआ है।”
राजा क्रोधित हुआ और बोला, “ यदि तुम्हारी बातों में
सच्चाई है तो दोनों सेविकाओं ने मुझसे झूठ कहां है। तुरंत उन्हें
मेरे पास बुलाया जाए। मैं उन्हें मृत्यु दंड दूंगा।”
दोनों सेविकाएं राजा के
सामने बुलवाई गई। आते ही दोनों राजा के
पैर पकड़कर क्षमा प्रार्थना करने लगी उन्होंने सारी बात राजा को बता दी। पर राजा
ने उनकी बातों पर ध्यान ना देते हुए उन्हें तुरंत मृत्युदंड दे दिया।
कहानी पूरी कर बेताल ने कहा, “ प्रिय राजन! दोनों सेविकाओं को मृत्युदंड देने का राजा महेंद्र का निर्णय वाकई आपको सही लगता है?”
विक्रमादित्य ने जवाब दिया, “ एक सेवक का कर्तव्य अपने
स्वामी की आज्ञा मानना है। सेविकाएं सजा
की हकदार थी। उन्हें राजा को जैसा देखा था वैसा ही बताना चाहिए था पर उन्होंने ऐसा
नहीं किया। उनका इरादा बुरा नहीं था। राजा और राज्य की भलाई का ही उन्होंने सोचा
था। उनका कार्य स्वार्थ हीन था।
इस परिपेक्ष में राजा का
उन्हें मृत्यु दंड देना उचित नहीं था।”
“ बहादुर राजा, आपने सही उत्तर दिया।” ऐसा बोलते हुए बेताल हवा
में उड़ता हुआ फिर से पेड़ पर चला गया।
विक्रम-बेताल की कहानी: सबसे बड़ा बलिदान | Sabse Bada Balidan – Vikram Betal Story in Hindi
राजा विक्रमादित्य बेताल के इस खेल से थकने लगे थे, पर वे अपने वायदे के पक्के थे। उन्होने फिर से पीपल के पेड़ पर से बेताल को उतारकर कंघे पर डाला और चलने लगे।
बेताल को बहुत मजा आ रहा था। उसने पूछा, “आप कब तक ऐसा करना चाहते हैं?” राजा ने कहा, “यह तो तुम पर निर्भर है”। बेताल ने हंसकर कहा, “ठीक है मैं अपनी कहानी शुरु करता हूँ।”
बहुत पहले महाबलीपुर नामक
शहर चंद्रपति नामक एक धनी व्यापारी रहता था। उसकी मधुमाला नाम की एक सुंदर कन्या
थी। एक बार किसी सामाजिक कार्यक्रम में मधुबाला की मुलाकात आदित्य नामक एक खूबसूरत, जवान हो गई। दोनों एक दूसरे
से बहुत अधिक प्रभावित हुए और परस्पर प्रेम करने लगे।
उनका प्रेम बढ़ते बढ़ते
इतना बढ़ गया कि आदित्य ने मधुमाला से विवाह करने का निश्चय किया। आदित्य मधुबाला
के पिता के पास उनकी अनुमति और आशीर्वाद लेने गया, पर चंद्र पति ने सर्वज्योति नामक किसी धनी सौदागर
के साथ पहले ही अपनी पुत्री का विवाह निश्चित कर रखा था। आदित्य यह जानकर बहुत
दुखी हो गया, उसका दिल टूट गया था।
वह मधुबाला की याद में दुखी
रहने लगा। एक दिन उसने मधुमाला को भूल जाने का निर्णय लिया। पर्र मधुमाला उसके
प्रेम को भुला नहीं पा रही थी। ना चाहते हुए भी उसे परिवार की खुशी के लिए
सर्वज्योति विवाह करना पड़ा।
विवाह के पहले ही दिन
मधुमाला ने आदित्य को एक पत्र लिखा कि वह उसके बिना नहीं रह सकती है। विवाह के
तुरंत बाद सब छोड़कर उसके पास आ जाएगी और फिर दोनों साथ रहेंगे। विवाह की रात मधुमाला
ने सर्व ज्योति को सब कुछ सच-सच बता दिया सर्व ज्योति ने उससे कोई जबरदस्ती ना
करते हुए उसे आजाद कर दिया।
मधुमाला विवाह के जोड़े में
आभूषण से लदी आदित्य के पास चल दी।
रास्ते में उसे एक चोर मिला, जो सारे आभूषण लेना चाहता था।
मधुमाला ने आग्रह किया, “ मैं अपने प्रेमी के पास
जाने की जल्दी में हूं। उससे मिलने के बाद मैं तुम्हें सारे आभूषण दे दूंगी”। चोर को विश्वास तो नहीं
हुआ फिर भी उसने मधुमाला को जाने दिया।
मधुमाला ने आदित्य के घर
पहुंचकर दरवाजा खटखटाया। आदित्य बाहर निकला और उसे देखकर अचंभित रह गया। वह नाराज
होता हुआ बोला, “ तुम अब एक विवाहित स्त्री हो। तुम्हें अपने पति के साथ होना
चाहिए था। मैं किसी दूसरे की पत्नी के साथ नहीं रह सकता हूं। तुम वापस जाओ, यहां तुम्हारी कोई जगह नहीं
है”। यह कहकर उसने दरवाजा बंद कर लिया।
मधुमाला बहुत रोई, पर भारी मन से उसे वापस
लौटना पड़ा। रास्ते में फिर उसे चोर मिला। उसे देखते ही मधुमाला ने रोते रोते अपने
भूषण उतारने शुरू कर दिए। चोर ने उसे रोता हुआ देख पूछा, “ तुम रो क्यों रही हो?” मधुमाला ने उसे अपनी कहानी
सुना दी। चोर बहुत दुखी हुआ और उसे सुरक्षित उसके घर पहुंचा दिया।
सर्वज्योति उसे वापस आया
देख नाराज होता हुआ बोला, “ तुम पराए आदमी के लिए घर छोड़कर चली गई थी। अब मैं तुम पर
विश्वास नहीं कर सकता। मुझे क्षमा करो, अब मैं तुम्हें पत्नी के
रूप में स्वीकार नहीं कर सकता, तुम जा सकती हो।”
मधुमाला पर तो मानो दुखों
का पहाड़ टूट पड़ा, अब वह कहां जाती? शर्मिंदगी के कारण मधुबाला
ने नदी में डूबकर अपनी जान दे दी। बेताल ने थोड़ा रुक कर राजा से पूछा, “ राजन आपके विचार में सबसे
बड़ा बलिदान किसका था?”
राजा ने कहां, “ बलिदान वो होता है जो स्वार्थ रहित तथा स्वेच्छा से किया जाता
है। आदित्य ने मधु माला का प्रेम ठुकराया पर किसी कारण से। मधुमाला किसी दूसरे की
पत्नी थी और वह किसी दूसरे की पत्नी के साथ नहीं रह सकता था।”
सर्व ज्योति ने मधुमाला को
जाने तो दिया पर वापस नहीं ले सकता था, क्योंकि उसे उस पर विश्वास
नहीं था। मधुमाला ने शर्मिंदगी के कारण अपनी जान दी.. इन सभी को बलिदान नहीं कहा
जा सकता है। बलिदान तो चोर ने दिया। चोरी करके वह अपनी जीविका चलाता है। उसे
मधुमाला पर दया आई और उसने उसके आभूषणों को नहीं लिया। उसकी इंसानियत बलिदान का
सर्वोत्तम उदाहरण है।
“मुझे पता था कि तुम सही उत्तर दोगे..” बेताल ने कहा और वापस उड़कर पेड़ पर चला गया। विक्रमादित्य मुढ़े और
फिर पेड़ की ओर चल दिए।
विक्रम-बेताल की कहानी: दो ब्राह्मण भाई | Two Brahmin Brothers – Vikram Betal Story in Hindi
बेताल पेड़ की शाखा से
प्रसन्नतापूर्वक लटका हुआ था, तभी विक्रमादित्य ने वहां पहुंचकर उसे पेड़ से उतारा और अपने
कंधे पर डाल कर चल दिए।
आकाश नितेश थोड़े-थोड़े
बादल छटने लगे और बादलों से तारे दिखने लगे थे। बेताल ने गहरी सांस लेकर राजा से
कहा, “ तुम हार नहीं मानते हो… है ना…?” राजा मुस्कुराया और बेताल ने अपनी कहानी शुरू की।
पाटलिपुत्र में कभी एक बहुत
ही विद्वान ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही विनम्र और धार्मिक था। उसके 2 पुत्र थे। दोनों ही अपने
पिता की तरह विनम्र थे। उनमें जन्मजात अद्भुत गुण थे।
बड़े पुत्र में लोगों का चरित्र पहचानने की शक्ति थी। ऐसा करके लोगों को दूसरों के इरादे पहले से ही बता कर सावधान कर देता था। छोटा पुत्र सूंघकर ही पहचान लिया करता था।
धीरे-धीरे ब्राह्मण के दोनों पुत्रों की ख्याति चारों तरफ फैल गई और राजा के कानों तक भी पहुंची। राजा ने उन्हें बुलाकर अपने यहां विशेष सलाहकार के रूप में रख लिया।
दोनों भाई राजा को निर्णय लेने में मदद करने लगे। राधा जब राजनयिक वार्ताओं के लिए दूसरे राज्य में जाते थे, तो दोनों ब्राह्मण पुत्र भी आ जाया करते थे।
एक दिन राजा इसी प्रकार की यात्रा पर दूसरे राज्य
गए हुए थे। वहां उनका भव्य स्वागत हुआ। राजा के सम्मान मैं उत्सव जैसा माहौल था और
कई रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे।
राजा और साथ गए लोगों ने भोजवा कार्यक्रम का खूब आनंद उठाया। राजा बहुत थक गए थे। आराम करने के लिए राजकीय अतिथि गृह में गए। वह भी खूब सजा हुआ था। राजा ने दोनों भाइयों के साथ आरामग्रह में प्रवेश किया। प्रवेश करते ही बड़े भाई को दाल में कुछ काला लगा। उसने कहा, “ महाराज, मुझे इस राज्य के राजा पर विश्वास नहीं है। वह आपसे ईर्ष्या करता है और आप को मारना चाहता है।”
उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित होते हुए राजा ने कहा, “ क्या बकवास कर रहे हो, उसने हमारी सुख सुविधा का इतना ख्याल रखता है और तुम्हें लगता है कि वह हमें नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। मुझे लगता है बहुत ज्यादा खाना खाने से तुम्हारा दिमाग काम नहीं कर रहा है”।
यह कहकर राजा बिस्तर पर बैठकर तकिया उठाने के लिए थोड़ा झुके… तभी बड़े भाई ने उनकी कलाई पकड़ ली।
“ मुझे क्षमा करें महाराज, पर मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है उस तकिए पर लेटने से पहले आप उसकी जांच जरूर करवा लें”।
राजा परेशान तथा चिड़चिड़ा हो गए। बड़े भाई की अवज्ञा ना करते हुए उन्होंने छोटे भाई से तकिए की जांच करवाई। छोटे भाई ने पास आकर सूंघा और कहां, “ महाराज, तकिए में जानवरों के बाल हैं। कुछ इतने नुकीले हैं की लेटते ही चुभेंगे या चमड़ी काट देंगे। तकिए के किनारे पर लगी लेस पर जहर है जिससे आपकी जान भी जा सकती है”।
राजा ने तकिए को हाथ भी नहीं लगाया और सारी रात बिना तकिए के ही बिताई सुबह दे चुपचाप अपने साथ उस तकिए को लेकर अपने राज्य वापस लौट आए। तकिए की जांच करवाने पर दोनों भाइयों की सत्यता प्रमाणित हो गई। राजा ने दोनों भाइयों को उनकी सेवा के लिए बहुत सारा इनाम दिया।
बेताल ने कहा, “ राजन, दोनों भाइयों में कौन अधिक चतुर तथा अधिक" था?
मुस्कुराते हुए राजा ने उत्तर दिया, “ बड़ा भाई। उसी ने मेजबान के गलत इरादे को भांपा था। उसी ने तकिए को भी पहचाना था। छोटे भाई ने तो बाद में बड़े भाई की शंका को सही बताया था”।
बेताल जोर-जोर से हंसने
लगा। बेताल को यह खेल खेलने में मज़ा आने लगा था। उसने कहा, “ राजन तुम्हारा उत्तर
बिल्कुल सही है” और वह उड़ा और पेड़ पर चला गया।
दोस्तों अभी विक्रम बेताल की कहानी का भाग - 01 है, जिसे पढकर आपको अच्छा लगा होगा, आने वाले दिनों में इसके और भी भाग आयेंगे, तो बने रहे हमारे साथ। अगर आपको ये विक्रम बेताल की कहानी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों मे भी शेयर करें, और भी कहानी पढ़ने के लिये नीचे लिंक पर जा सकते हैं। धन्यवाद...