अकबर का कला प्रेम हिंदी कहानी | Akbar Birbal Story in Hindi

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अकबर का कला प्रेम हिंदी कहानी (Akbar Birbal Story in Hindi)

बादशाह अकबर को तरह-तरह की कलाओं से बड़ा प्यार था। उन्हें संगीत में बहुत आनंद आता था। एक बार उन्होंने संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया, हिंदुस्तान के बेहतरीन संगीतकारों को बुलाया गया। सभी संगीतकार बड़े प्रसन्न हुए कि उन्हें हिंदुस्तान के बादशाह की ओर से अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला है।

प्रतियोगिता वाले दिन, संगीतकार आगरा के शाही दरबार में एकत्र हो गए। बादशाह अकबर के दरबार में प्रवेश किया और बोले, “ मैं हिंदुस्तान का बादशाह अपनी राजधानी में आपका स्वागत करता हूं। मैं आशा करता हूं कि आपको यहां  किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। 

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आप सब जानते हैं कि आप लोगों को एक संगीत प्रतियोगिता के लिए आमंत्रित किया गया है। मैं आप सब को इस प्रतियोगिता के सारे नियमों के बारे में बताना चाहता हूं। यह कोई सामान्य प्रतियोगिता नहीं है।”
सभी प्रतियोगी एक दूसरे का मुंह देखने लगे। 

बादशाह अकबर प्रतियोगिता के विशेष नियम बताने जा रहे थे और वे सब सुनने के लिए उत्सुक थे। बादशाह अकबर ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “आप लोगों को इस प्रतियोगिता में मुझे या अन्य श्रोताओं को  प्रसन्न नहीं करना है। आप सबको एक बैल को प्रसन्न करना है, जिसे कुछ ही देर बाद दरबार में लाया जाएगा। जो संगीतकार अपने संगीत से बैल का दिल जीतने में कामयाब होगा, वही प्रतियोगिता का विजेता माना जायेगा।  

अब आप लोग अपनी प्रतिभा  से बैल का दिल जीत कर दिखाएं।”
जैसे ही बादशाह अकबर ने अपनी बात समाप्त की, वैसे ही दरबार में एक बैल ने कदम रखता। सारे प्रतियोगी ऐसा नियम सुनकर चकित रह गए थे। यह उनके जीवन का पहला अवसर था, जब उन्हें अपने संगीत के बल पर एक पशु का दिल जीतना था। यह कोई आसान काम नहीं था। कुछ ही क्षणों में अकबर ने प्रतियोगिता आरंभ कर दी।

सारे संगीतज्ञ एक-एक करके आगे आने लगे और अपनी सबसे बेहतरीन धुन से सबका मनोरंजन करने लगे। लेकिन वे लोग बैल का मन नहीं बहला पा रहे थे। बादशाह अकबर को कुछ धूनें  बहुत पसंद आई, लेकिन बैल को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए उन धुनों को अच्छा नहीं माना जा सकता था। सभी प्रतियोगी बैल के सामने आकर अपना संगीत प्रस्तुत करते रहे, परंतु वे जो का त्यों रहा। उसे तो जैसे इन धुनों सेकोई अंतर नहीं नहीं पढ़ रहा था।

अंत में बीरबल की बारी आई। बादशाह अकबर को पूरा यकीन था कि वे बैल को अपने संगीत से प्रभावित कर लेंगे। लेकिन मामला थोड़ा गंभीर था, क्योंकि बड़े से बड़े संगीतकारों ने हार मान ली थी। इसके अलावा बीरबल संगीत में निपुण भी नहीं थे। अकबर बोले, “ प्रिय बीरबल देखें,  क्या तुम हमारे बैल का मन बहला सकते हो?”

जहांपना मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा।” बीरबल बोले। सब ने यह सोचा कि  अब बीरबल एक मधुर धुन सुनाएंगे। परंतु यह क्या, वह तो अपने वादे यंत्र से गाय के रंभा ने और मच्छरों के भिन्न-भिन्नाने के सुर निकालने लगे। जैसे ही बीरबल ने ऐसा करना आरंभ किया बैल के कान खड़े हो गए और वह अपनी दुम हिलाने लगा,  मानो उसे इस संगीत में बड़ा आनंद आ रहा हो।

इस तरह बीरबल ने महान संगीतज्ञ के बावजूद संगीत प्रतियोगिता में जीत हासिल की और अकबर का  सर गर्व से ऊंचा हो गया।

संगीत प्रतियोगिता में जीत हासिल करने के बाद अकबर ने बीरबल को चित्रकला के लिए एक चुनौती दी। बादशाह अकबर को चित्रकला का भी शौक था। उनके महल में सैकड़ों बहुमूल्य चित्रों का संग्रह था। से सुंदर चित्र खरीदते और इस कला को बढ़ावा देते। उन्हें संगीत और चित्रकला में बेहद आनंद आता था। एक दिन उन्होंने बीरबल से कहा, “ बीरबल मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है।

तुमने संगीत प्रतियोगिता जीतकर मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। तुम्हारे सामने जो भी चुनौती रखी जाती है, तुम उसे बहुत अच्छी तरह पूरी करते हो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए एक चित्र बनाओ।”
अकबर की बात सुनकर अब बीरबल परेशान हो गए और बोले, “जहांपना आपसे क्षमा चाहूंगा, परंतु मुझे नहीं लगता कि मैं आपकी यह चुनौती पूरी कर सकूंगा।

मैं तो चित्र बनाने के लिए  ब्रश तक हाथ में नहीं पकड़ सकता। मेरे लिए यह चुनौती पूरी करना मुश्किल है। मुझे चित्र बनाना नहीं आता।” बीरबल का यह जवाब सुनकर अकबर को बहुत गुस्सा आया और बोले, “ बीरबल, मुझे तुमसे ऐसा जवाब मिलने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।

तुमने मेरा सिर नीचा कर दिया। मैं तुम पर कितना दर्द करता हूं।” बीरबल ने कुछ कहना चाहा, परंतु चुप हो गए। अकबर बोले, “ मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता कि तुम चित्र बनाना जानते हो या नहीं। मैंने तुम्हें एक रूप में दिया है, अपनी कल्पना से एक सुंदर चित्र बना कर लाओ।”

यह सुनकर बीरबल समझ गए कि अब उनके पास बादशाह अकबर की बात मानने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है। उन्हें यह चुनौती स्वीकार करनी ही पड़ी। उन्होंने बादशाह अकबर से कहा, “ जहांपना मैं आपसे माफी चाहता हूं कि मैंने आपकी बात काटी। मैं अपनी भूल सुधारना चाहता हूं। मुझे आप की चुनौती मंजूर है। मुझे इस कला की बहुत जानकारी नहीं है, अतः चित्र बनाने के लिए थोड़ा समय चाहता हूं।”

बादशाह अकबर ने हामी भर दी और बीरबल अपने घर चले गए। बीरबल घर जाकर सोचने लगे कि क्या चित्र बनाएं, लेकिन उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। इस तरह पूरा 1 सप्ताह बीत गया। 1 सप्ताह बाद अकबर ने बीरबल को दरबार में बुलाकर पूछा, “ बीरबल, मैं यह देखना चाहता हूं कि तुमने कैसा चित्र बनाया है।”

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“ जी, जहांपनाह जरूर देखें। आशा करता हूं कि आप इसे देखकर प्रसन्न होंगे।” बीरबल बोले। फिर  बीरबल ने एक सहायक को संकेत किया कि वह दरबार में आए। बीरबल का सहायक एक चित्र लेकर दरबार में आया, जो सफेद कपड़े से ढका था। जब कपड़ा हटाया गया, तो पूरे चित्र में अकबर को सफेद और भूरे रंग के धब्बों के सिवा कुछ नहीं दिखाई दिया। उन्होंने गुस्से से पूछा, “बीरबल यह कैसा चित्र है?” बीरबल ने कहा, “ जहांपना यह घास खाती हुई गाय का चित्र है।” अकबर ने पूछा, “ इस चित्र में गाय कहां है?”

 बीरबल ने जवाब दिया, “ वह तो चली गई।” 

“और घास कहां है?” अकबर ने पूछा। बीरबल ने सफाई दी, “जहांपना उसे तो गाय ने खा लिया।”
अकबर समझ गए कि बीरबल से जीतना वाकई कठिन है।

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