सच्ची शिक्षा हिंदी कहानी | Moral Story in Hindi

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सच्ची शिक्षा-हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

हिंदी नैतिक कहानियाँ हमारे जीवन को अच्छा बनाने के लिये बहुत ही जरूरी हैं। इसलिये आज हम आपके लिये लायें हैं, एक ऐसी ही शिक्षाप्रद कहानी जो आपको पढ़कर अच्छी लगेगी। और इस कहानी का शीर्षक है सच्ची शिक्षा

दोस्तो यह कहानी है, एक शरारती बच्चे की है। जिसका नाम मोहन था। मोहन एक ऐसा शरारती बच्चा था जिसने अपने पूरे मौहल्ले में अपनी शरारतों की वजह से सबकी नाक में दम कर रखा थाउसकी शरारते भी ऐसी होती कि लोगो के आपस में झगड़े तक करवा देती थी वो कभी किसी की साइकल पंचर कर देता, तो कभी किसी के घर की बेल बजाकर भाग जाया करता था

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सभी मौहल्ले वाले मोहन से बहुत परेशान हो चुके थे। मोहन की उम्र इतनी भी कम नहीं थी, कि उसे बच्चा समझकर छोड़ दिया जाये, इसलिये सभी उसको बहुत डांटते और कभी- कभी तो मार भी देते थे

जब भी उसके पापा, दफ्तर से घर वापस आते, तो मोहन उनसे पड़ोसियों की शिकायत करता था कभी कहता, उसे गुप्ता अंकल ने डाटा या कभी शर्मा आंटी ने उसे झाड़ू से मारा जब मोहन के पापा पड़ोसियों से बात करने जाते, तो पड़ोसी उल्टा उन्हे ही चार बातें सुनाकर जाते थे मोहन के पापा,अब उसकी शरारतों से परेशान हो चुके थे

एक दिन, मोहन के पापा ने सोचा कि आज वो दिन भर मोहन के साथ रहेंगे और उसकी सभी शरारतों मे उसका साथ देंगे

सुबह से ही मोहन की शरारते शुरू हो गई उसने पड़ोसी का न्यूज़ पेपर छिपा दिया जब गुस्से से लाल पड़ोसी बाहर आया,  तो उन्हे देख मोहन ज़ोर- ज़ोर से हंसने लगा इस बार मोहन के साथ उसके पापा को देख पड़ोसी के गुस्से  का पारा, जून की गर्मी से भी कई गुना ज्यादा हो गया था गुस्से से लाल पड़ोसी ने दोनों को बहुत सुनाई, पर जब मोहन और उसके पापा को कोई फर्क नहीं पड़ा, तो वो भी दरवाजा पटकते हुये घर के अंदर चला गया

अब मोहल्ले में बाते भी शुरू हो गई थीलड़का क्या कम था, जो बाप भी ऐसा करने लगा। मोहन ने दिनभर बहुत सी शरारते की, उसके पापा ने भी उसका भरपूर साथ दिया रात को उसके पापा ने मोहन से कहा तुमने आज बहुत सारी शरारते की और तुम्हें मजा भी बहुत आया पर, अब कल से मैं भी तुम्हारे साथ शरारते करूंगा  क्या तुम मेरा साथ दोगे मोहन को तो यह सुनकर मजा ही आ गया

अब अगले दिन सुबहमोहन के पापा, उसे सब्जी बेचने वाली बुढ़िया के पास ले गये मोहन, अक्सर ही उस बुढ़िया को बहुत परेशान किया करता थाकभी उसकी सब्जियाँ फेंक देता, तो कभी उसकी चप्पल चुरा लेता फिर वो बुढ़िया डंडा लेकर उसके पीछे भागती

मोहन को लगा पापा भी कुछ ऐसा करेंगे लेकिन उसके पापा ने कुछ अलग किया बुढ़िया जैसे ही अपनी सब्जियों से दूर गई मोहन के पापा ने, मोहन के साथ मिलकर सब्जियाँ साफ करके जमा दी बुढ़िया वापस आई तो, जमी हुई सब्जियाँ देख कर बहुत खुश हुई

थोड़ी देर बाद, जब बुढ़िया की आँख लग गई, तो मोहन के पापा ने बुढ़िया की टूटी चप्पल ठीक करवाकर रख दी। जैसे ही बुढ़िया उठी, चप्पलों को देख उसकी आंखे भर आई और वो कहने लगी भगवान उस फरिश्ते को खुश रखना, जिसने मेरे लिए इतना किया

शाम होते होते तक मोहन के पापा ने छिपकर बुढ़िया की बहुत मदद की मोहन को भी छिप- छिपकर ये सब करने मे बहुत मजा आ रहा था, पर वो यह नहीं जानता था, कि इस बार वो शरारत नहीं, बल्कि लोगो की मदद कर रहा हैं

थोड़ी देर बाद, मोहन के पिता ने बुढ़िया से जाकर कहा माता जी, आप जानना नहीं चाहती, कि आज आपकी मदद कौन कर रहा हैं ? बुढ़िया ने कहा हाँ, बिलकुल जानना चाहती हूँ तब मोहन के पिता ने राजू को आगे बुलाया और कहा माता जी, ये सब मोहन ने किया हैं मोहन को लगा, आज फिर बुढ़िया उसे झाड़ू से मारेगी और वो भागने लगा तब बुढ़िया ने उसे पकड़ा और गले लगा लिया साथ ही, मोहन को एक चोकलेट भी दी

मोहन को कुछ समझ नहीं आ रहा था  वो अपने पापा के साथ वापस घर आ गयापूरे टाइम बोलते रहने वाला मोहन आज चुप था मोहन के पापा ने उससे कहा मोहन बेटा, आज जो तुमने किया, क्या तुमको उससे खुशी मिली ? मोहन ने कहा हाँ पापा,  और एक चॉकलेट  भी मिली

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मोहन के पापा ज़ोर- ज़ोर से हंसने लगे मोहन के पापा ने उसे समझाते हुये कहा बेटा, तुम रोज रोज सबको परेशान करते हो, फिर सब तुम्हें डांटते हैं और फिर  तुम मुझसे आकर, उनकी शिकायत करते हो  लेकिन आज तुमने सबकी मदद की, तो उन्होने तुम्हें बहुत प्यार किया

मोहन को सारी बाते समझ आ जाती है, और वो शरारते करना बंद कर देता है

कहानी से सीख ( Moral Of The Story):

दोस्तों , आजकल के बच्चे इंटेलिजेंट तो होते हैं, पर संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं क्या आपने कभी सोचा हैं ऐसा क्यूँ हो रहा हैं ? ऐसा इसलिये हो रहा हैं, क्यूंकि आजकल के माता पिता, अपने बच्चो के खिलाफ एक शब्द  भी सुनना पसंद नहीं करतेऐसे मैं वो अपने बच्चो को सही गलत सीखा ही नहीं पाते

बच्चो को सच्ची तालिम उनके माता पिता ही दे सकते हैं. अगर राजू के पापा केवल उसी ही की बात सुनते और पड़ोसियों से लड़ते, तो वो राजू को कभी सही गलत का अहसास नहीं करवा पाते। अगर हर माँ बाप अपने बच्चे को बचपन से ही एक अच्छी तालिम दे, तो एक  अच्छे समाज का निर्माण होगा

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